Top Shiv chaisa Secrets
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जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
अर्थ: हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे (पौराणिक कथाओं के अनुसार सागर मंथन से निकला यह विष इतना खतरनाक था कि उसकी एक बूंद भी ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी थी) आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
भजन: शिव शंकर को जिसने पूजा उसका ही उद्धार हुआ
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥ सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा॥
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कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
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शनिदेव मैं सुमिरौं तोही। विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥ तुम्हरो नाम अनेक बखानौं। क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
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